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पिछले अंक में अमृतवाणी की थोड़ी चर्चा हुई थी.स्वामीजी द्वारा रचित यह लघु ग्रन्थ अद्भुत है.
इसमें राम कृपा अवतरण, नमस्कार सप्तक, मूल अमृतवाणी और धुन है.
श्री राम शरणं में होने वाली प्रातः सभा में अमृतवाणी का गायन होता है.
सबसे पहले “ सर्वशक्तिमते परमात्मने श्री रामाय नमः “ का ७ बार उच्चारण किया जाता है.
फिर “ नमस्कार सप्तक “ का पाठ होता है. इसमें ७ दोहों में परमात्मा को नमस्कार किया गया है :
करता हूँ मैं वंदना नतशिर बारम्बार
तुझे देव परमात्मन मंगल शिव शुभकार
अंजलि पर मस्तक किये विनय भक्ति के साथ
नमस्कार मेरा तुझे होवे जग के नाथ
दोनों कर को जोड़कर मस्तक घुटने टेक
तुझ को हो प्रणाम मम शत शत कोटि अनेक
पाप हरण मगल करण चरण शरण का ध्यान
धार करूँ प्रणाम मैं तुझ को शक्ति निधान
भक्ति भाव शुभ भावना मन में भर भरपूर
श्रद्धा से तुझ को नमूं मेरे राम हजूर
ज्योतिर्मय जगदीश हे तेजोमय अपार
परम पुरुष पवन परम तुझ को हो नमस्कार
सत्यज्ञान आनंद के परम धाम श्री राम
पुलकित हो मेरा तुझे होवे बहु प्रणाम
स्वामीजी का कहना है की जहाँ जहाँ वंदना, नमस्कार, प्रणाम, नमूं शब्द का उपयोग है वहां पर परमात्मा का स्मरण करते हुए वैसी ही क्रिया की जानी चाहिए.
शेष फिर.
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